Thursday, August 10, 2006

आग लगाता है

आग लगाता है, तो कोई काँटे बोता है,
छोटे-से इस दिल के अंदर क्या-क्या होता है ।

बारिश होती है, तो बाहर दुनिया हँसती है,
दिल बेतरहा रोए, जैसे बच्चा रोता है ।

शाम हुई खुलती है आँखें, तन्हा रातों में,
खुद से ही बातें करता है, दिन भर सोता है ।

नाज़ उठाने की ज़हमत से जो नावाक़िफ़ था,
दिल है वह ही लेकिन, अब वह पत्थर ढोता है ।

गुज़रे लम्मों के अफ़साने, बीते पल की बातें,
कहते-सुनते अपना दामन आप भिगोता है ।



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By- www.srijangatha.com
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