Thursday, August 10, 2006

मंज़र देख ज़रा

मंज़र देख ज़रा

मुझमें क्या है, मेरे अंदर देख ज़रा ।
प्यासा –प्यासा एक समंदर देख ज़रा ।

कल जो सीना –बाहें ताने फिरता था,
हार गया वह एक सिकंदर देख ज़रा ।

प्यार-मुहब्बत के जो नग़में गाता था,
रोता है वह मस्त कलंदर देख ज़रा ।

तेरा शायर फूलों से भी नाज़ुक था ,
उसके सीने में है ख़ंजर देख ज़रा ।

जिस माली ने तेरा गुलशन सींचा है,
उसकी बर्बादी का मंज़र देख ज़रा ।



***********************
By- www.srijangatha.com
***********************

No comments: