देर तक मल्हार गाया बादलों ने,
रात भर हमको सताया बादलों ने ।
हसरतें नाकाम होकर सो गई थीं,
आज उनको फिर जगाया बादलों ने ।
दिल-ज़िगर रूहो-नज़र सब तर–बतर हैं,
आज ऐसा ज़ुल्म ढाया बादलों ने।
अब किसे देखें अँधेरा दर-बदर है,
चाँद का चेहरा छुपाया बादलों ने ।
रेत बनकर तिश्नगी ठहरी हुई है,
ख़्वाब का दरिया बहाया बादलों ने।
सब्ज़ यादों की तरह खामोश रहकर,
शाम ढलते सर उठाया बादलों ने।
Thursday, August 10, 2006
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