Thursday, August 10, 2006

पुण्य क्या है पाप क्या है ?

होम करते घर जलेंगे ।
देवता हमको छलेंगे
यह नियति है सृष्टि का तो,
फिर भला संताप क्या है ?


पूछता हूँ मैं जगत से,
पुण्य क्या है पाप क्या है ?


देह धर्मो से अलग यह,
मन कभी होता नहीं है,
और अपनी अस्मिता को,
वह कभी खोता नहीं है ।
इसलिए तो प्राण जीवित ।
नैन में अभिसार जीवित ।


मृत्यु का यह द्वार देखे.....
तो भला अभिशाप क्या है ?


भावना के फूल अपनी
कामना लेकिन खिलेंगे ।
देवता के शीर्ष पर कुछ
धूल में जाकर मिलेंगे ।
डालियों पर फूल भी हैं ।
साथ लेकिन शूल भी हैं ।


कंटकों पर वह खिलें ते,
फिर बताओं श्राप क्या है ?


सात जन्मों से अधर की,
प्यास लेकर जो खड़े हैं ।
देखते निर्मोहियों के
हाथ अमृत के घड़े हैं ।
एक है अतृप्त मन से ।
एक है संतृप्त तन से ।


है यही जीवन भला तो,
वंचना का माप क्या है ?


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By- www.srijangatha.com

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